गुरुवार, 29 अक्टूबर 2015

पुरस्कार या सम्मान लौटाना देश का अपमान

पता नहीं कौन सी पागलपंती तथाकथित बुद्धिजीवियों पर सवार हुई की दनादन पुरस्कार और सम्मान लौटा रहें हैं |ये सरासर बेहूदापन  है और कुछ नहीं | मात्र  खीझ निकालने के लिए ऐसे कदम उठाना  ठीक नहीं | अगर आप बुद्धिजीवी कहलाते हैं तो थोडा अक्ल  से काम लेना भी सीखे | ये कौन सा रास्ता आपने अख्तियार किया है | क्या इससे विश्व स्तर पर बहुत हीं अच्छा सन्देश जा रहा है ? पुरस्कार , सम्मान लौटाने वाले न सिर्फ अपना बल्कि देश का भी अपमान कर रहें है | इस तरह के कदम उठाने वाले लोग अगर ये सोच कर ऐसे कदम उठा रहें हैं की ये सरकार के प्रति विरोध है तो ये उनकी भूल हीं है | असल में ये देश के प्रति विरोध है क्या इतनी भी बात बुद्धि में नहीं आ रही | इसीलिए मैंने तथाकथित बुद्धिजीवी शब्द का प्रयोग किया है | क्या सरकार का विरोध और देश के विरोध में इन्हें फर्क नहीं दिख रहा | इन्हें इस तरह के सम्मान या पुरस्कार देश ने दिया है न की किसी ख़ास सरकार ने | इस तरह के कदम उठाना सम्पूर्ण देश को गलत साबित करना होगा |

       इस तरह के कदम उठाने वालों का कथन है कि देश में अराजक स्थिति उत्पन्न हो गयी है ! क्या सच में ? जरा दिल पर हाथ रख कर अपने दिल से पूछें की भारत में इतनी अराजकता फ़ैल गयी है की जीना मुहाल हो गया है | मुझे तो इन सब के पीछे  राजनैतिक चाल तथा  षडयंत्रकारी सोच हीं नजर आ रही है | मुझे  तो ऐसी अराजक स्थिति कहीं दिखाई नहीं दे रही ! क्या सड़कों पर चलना मुहाल हो गया है ? क्या सर्वत्र मार काट मची हुई है ? ऐसे कदम उठा कर मात्र वास्तविक स्थिति को बढ़ा चढ़ा कर साबित करने का प्रयास किया जा रहा है और कुछ नहीं | इस तरह के कदम उठाने वाले ऐसे कदमों से बचे वर्ना कालन्तर में ऐसे कदम उठाने के लिए उन्हें कलंकित कृत्य  करार दिया जायेगा | समाज और देश में जब उनके इन कृत्यों की चर्चा होगी तो कोई भी उन्हें सही साबित नहीं कर पायेगा |

जय हिन्द जय भारत !

बुधवार, 28 अक्टूबर 2015

बंद करो मोदी मोदी का राग !

मेरा मोदी भक्तो से सादर अनुरोध है कि वे वजह मोदी मोदी न करें | किसी की प्रशंशा तो ठीक है किन्तु किसी की अंधभक्ति ठीक नहीं | मोदी साहब अगर प्रशंशनीय कार्य करें तो निश्चित हीं उनकी प्रशंशा होनी चाहिए , किन्तु अंध भक्ति ठीक नहीं | पिछले दिनों सोसल मीडिया पर अंध भक्तों की बाढ़ आई हुई है | जरा सा कोई नरेंद्र मोदी जी का नाम ले कर कोई आलोचनात्मक बात करो की बस शुरू हो जाते हैं | गाली  गलौज तक पर उतर आते हैं |
       मेरा कहना साफ़ है दो बातें होती हैं पहला कि अगर किसी की  आलोचना शिकायत हो तो इसका मतलब हुआ बंदे  में कुछ अच्छा गुण है इसलिए विरोध हो रहा है | दूसरी बात किसी  के गुण दोषों की  आलोचना अवश्य होनी चाहिए ये स्वच्छ पारदर्शिता की निशानी है | इससे किसी को स्वयं के अवलोकन करने का मौका मिलता है तथा उस व्यक्ति से सम्बन्धित व्यक्ति को भी नया नजरिया मिलता है  | अगर मैं किसी की सिर्फ प्रशंसा हीं प्रशंसा करूँ  और उसके दुर्गुणों को नकार दूं तो ये सम्बन्धित व्यक्ति के प्रति अन्याय होगा | आलोचनात्मक विचारों को स्वीकार करना और उस पर शालीनता से  प्रतिक्रिया देना खुले मानसिकता का परिचायक होता है | हमें अपने देश को अग्रिम पंक्तियों में रखना है तो अपनी मानसिकता को विस्तृत करना होगा और एक निष्पक्ष दृष्टिकोण पैदा करना होगा |

       अंततः यही कहना चाहूंगा प्रशंसा शौक से करें किन्तु आलोचनाएँ भी स्वीकारें ये आपके खुले मानसिकता का परिचायक होगा |